आत्मिय अवाजना मालिकने Gujarati Kavita By Naresh K. Dodia

आत्मिय अवाजना मालिकने Gujarati Kavita By Naresh K. Dodia
आत्मिय अवाजना मालिकने Gujarati Kavita By Naresh K. Dodia
आत्मिय अवाजना मालिकने “तमे” जेवां
वजनदार शब्दोथी बोलावतॉ नथी.
“तमें”मांथी “तुं” बनवां माटे लांबी
सफर खेडवी पडे छे

पण छतां मारी सफर खूब आरामदेह रही
कारण मात्र अने मात्र तुं ज बनी रही छे
सफरमां हमसफर बधाने तो तारा जेवा मळे नही
नसीबदारने त्यां कायम एक जोगणीने
रमवुं ज पडे छे.

तारी भाषा अने तारी बोलचाल अने नजाकत
जाणे कोइ इश्वरीय अहेसासोनी खिदमत
मारा माटे थती होय एवुं लागे छे
ज्यारे ज्यारे तुं मारी साथे संवास साधे त्यारे

त्यारे मने हमेंशा लागे छे के
जयारे तारां शब्दोमां सगीतनी महेफिल छे

तारी आवी जादुगरी मने अंचबित करे छे.
खरेखर वैभव छे तारा शब्दो नो….
आटली खुशीनो मने एकलाने मालिक बनावी देनार.

तारुं कर्ज केटलीय कवितामां पण चुकवी नही शकुं
कदाच आवतां जन्ममां पण तारो करजदार बनीश.

शब्दो खोवाया छे मारी कविताना
मारी सामे तुं गझल बनीने उभी छे

एक अजाण्युं विश्व आजे मारी मालिकीनुं बनी गयुं.
मारी सवारने कवितानां पुश्पोथी खुष्बुदार बनावनांर् .
ए उपवनने हुं शुं नाम आपुं?
गीत कहुं के गझल ?
- नरेश के. डॉडीया

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