बरसो से तुं ख्वाब बन के आंख मे रहती थी Muktak By Naresh K. Dodia
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बरसो से तुं ख्वाब बन के आंख मे रहती थी Muktak By Naresh K. Dodia |
बरसो से तुं ख्वाब बन के आंख मे रहती थी
सामने आइ तो हुर से बेहतर लगती थी
हुस्न का दीदार तेरा जब से किया है मैने
चांद की नूमाइस नजर के सामने बनती थी
- नरेश के. डॉडीया
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Muktak
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