कुछ मंझर हमे भी याद आता है, Hindi Kavita By Naresh K. Dodia

कुछ मंझर हमे भी याद आता है, Hindi Kavita By Naresh K. Dodia
कुछ मंझर हमे भी याद आता है, Hindi Kavita By Naresh K. Dodia

कुछ मंझर हमे भी याद आता है,कुछ तुम्हे भी याद आता होगा,
कुछ सालो पहेले हम दोनोने मिलके एक वकत का पेड बोया था.
हम दोनो सांसो की नमीसे वोह पेड को सवारा करते थे,
शाखाए नीकल पडी थी चारो तरफ,फुलोकी बेले क़ी झडी लगी थी.

तेरे बालोकी उडती परछायके साथ अकसर सुरज डुबता रहता था,
रातके साये जम जाते थे तब भी गुफतगु कां दौर खत्म ना होता था 

रूह की प्यास बुजाती था जैसे कोइ प्यासा को मीले पनघट,
सांसोकी सरगरमिया परवान चडती थी वोही वकत के पेडके साये मे.

सुबहके सुरजकी केशरी किरनो के साथ उठता था 
तेरे ख्वाबो की रंग से पाव से सर तक छलकतां हुवां 
तब भी एक प्यास रहेती थी उस दिनकी शाम की इंतजारी का.
हम दोनो की कविता गजल के कइ कारनामे से
रोशन हुवा करता था हम दोनो के अलफाजो कां एक आशीयाना 

वकत ने आदतन अपनी करवट बदली 
लेकीन मेरी आदत आज भी वोही है 
सुबाह से लेकर शाम तक,वोह वक्त पेड की शाखो पे
बिते हुवे लम्हे को देखने की 

जब तुम साथ होती थी महोतरमां,
तब मै तुम्हारा पंसदीदा लम्हा तोड के
तुम्हारे हाथ मे थमां देता था. 

अब जब तुम्हे वकत मिले तो एक बार फिर से आ जाना 
फिर से वोह वकत के पेड से फिर से एक लम्हा चुराने के लिए
-नरेश के.डॉडीया
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