जिस्म छूती है जब आ आ के पवन बारिश में Urdu Gazal By जाँ निसार अख़्तर
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जिस्म छूती है जब आ आ के पवन बारिश में Urdu Gazal By जाँ निसार अख़्तर |
जिस्म छूती है जब आ आ के पवन बारिश में
और बढ़ जाती है कुछ दिल की जलन बारिश में
मेरे अतराफ़ छ्लक पड़ती हैं मीठी झीलें
जब नहाता है कोई सीमबदन बारिश में
दूध में जैसे कोई अब्र का टुकड़ा घुल जाए
ऐसा लगता है तेरा सांवलापन बारिश में
नद्दियाँ सारी लबालब थीं मगर पहरा था
रह गए प्यासे मुरादों के हिरन बारिश में
अब तो रोके न रुके आंख का सैलाब सखी
जी को आशा थी कि आएंगे सजन बारिश में
-जाँ निसार अख़्तर
Labels:
Urdu Gazal
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