उस कां आंनंद सिर्द कानां को ही पतां है Hindi Kavita By Naresh K. Dodia
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| उस कां आंनंद सिर्द कानां को ही पतां है Hindi Kavita By Naresh K. Dodia |
हम दोनो कां वजुद अब नये ढांचे ढलतां जा रहा है
शुरुं शुरुं तुम्हे बहुंत परेसानी थी यह हकीकत है
कयुं की में आम शायर की तरह नही हुं.
मुझे तुम्हारे हुस्न में कोइ दिलचस्पी नही है
जो तुम्हारी तारीफ की मुसलसल बाते करे
मुझे नाझ नखरो में पली कोइ जल्वागाह नही चाहिए
शायद बरसो बाद मैने तुम्हारी अंदर
मीरां की झांकी देखी
राधा की आराधनां देखी
नुर ए जहां की मालकिन लगी
शायद अब मुझ में कोइ सुफी पल रह है
जो इंसान की अंदर कुछ खुदाइ रोनक देखनां चाहतां है
जो सनम को अपनां खुदा बनाकर बंदगी करतां है
अपनी मस्ती में सफेद लिबास में नाचतां है
एक दिन तुम मुझे मिलने आइ थी
तब तुम्हारी आंख में कोइ खुदाइ नुर देखां तो
मुझे लगां के खुदां तो मेरे सामने नही है
कयुं नां मे मेरे सनम को खुदा मानकर बंदगी करूं
तब से मैने महोतरमां के नाम से अलफाजो मे
बंदगी शुरु की...जहां हुस्न की तारीफ नही
सिर्फ दिवानगी...दिवानगी और सिर्फ दिवानगी है
मालुम नही यह खूबसूरत चहेरे एक जैसे लगते है
कोइ जल्वे की नुमाइश करतां है
कोइ अपने लिबास के जल्वे दिखाता है
फोटॉसोप में बनी हुवी गोरी गोरी तस्वीरे
यह सब ना जाने मुझे कयुं आंखे फेरने मजबूर करतां है
मुझे मालुम है तुम औरतो को सजने का बहुंत शोख है
और ये सब औरतो का मालिकाना हक्क है
हुस्न की तौहीन करनां मुझे भी अच्छा लगतां नही है
एक राधा के गोरी होने से
हर आदमी को गोरी औरते पसंद हो ये जरूरी नही है
कुछ साल पहेले की बात है जब
हाथ में बंसी लेकर राधा के साथे काना की तस्वीरे
मुझे बहुत अच्छी लगती थी
लेकिन ना जाने अब मुझ को
अपनी गैया के साथे हाथ मे बंसी लेकर
अकेला काना की तस्वीर अच्छी लगती है
अब मेरी गजले,नज्मे अकेले कान की
बांसुरी का सुर जैसा लगतां है...उस कां आंनंद
सिर्द कानां को ही पतां है
- नरेश के. डॉडीया
Labels:
Hindi Kavita

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