तारी प्रकृतिदत्त आदतो नही बदले तुं Gujrati Kavita By Naresh K. Dodia
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तारी प्रकृतिदत्त आदतो नही बदले तुं Gujrati Kavita By Naresh K. Dodia |
तारी प्रकृतिदत्त आदतो नही बदले तुं
तारी प्रकृति पण कदी नही बदले तुं
कयारेक अमस्ती रिसाय जाय छे तो
ने पछी अमस्ती मलकाय जाय छे
तारामां कंइक छे एवुं जे मने गमे छे
भले तुं मध्या थइ गइ छे तो पण
रही-रहीने मुग्धतांनी महेक मलके छे
खिले छे अवनवी महेकती वंसतने
पांगरे छे संवेदनानी मौसमी वेल
तारा दैवत्वने तो सदा आ सर नमे छे
काजळनी पतली रेखा तारी आंखे शोभे
नयनोनी भाषा तारी आंखोने ज ओपे
रूपाळा चहेरे अवनवी भाषाओ भाषे
पाम्यो तने ए लखचोरासीनो मेळॉ छे
तारी र्चोकट छे ज्यां मारी मानता फळे छे
लीला वर्षावनो जेवी महेकती ताजगी
लागणीना गाढ जंगलमां तुं चहेके छे
कोइ पंखीणी जेवी भाषा तुं बोले छे
लोको एने तो मारी कविता कहे छे
तारा सानिध्यनी डाळ मनपंखीने फावे छे
अधिकारभावनो अमल तने गमे छे
‘हा’अने’ना’वच्चे कदीक अटके छे
अंते तो तारूं मनगमतुं ज मने मळे छे
जे इच्छुं हवे मांग्या विनां मने मळे छे
तु बधुं आपे छे छतां इच्छा फरी चळे छे
कदी एवो मोको ते मने आप्यो नथी
के मारे’आइ लव युं’तने कहेवुं पडे
विश्वनी तमाम भाषामां प्रेम कहेवाय
एनांथी नवी भाषांमां तुं मने चाहे छे
कलम तारी दिवानी थइने तने झंखे छे
दुनियानां तमाम रस्मो रिवाजोथी पर
अजाणी राह पर तारी साजेदारी छे
पगले पगले संबधोनां नवा पुष्पो पांगरे
ने दुनियां अचरजभावे नवो बाग जुवे छे
तारा श्वासोथी आच्छादित पुष्पो केवा शोभे छे
कारणके मारामा तुं छे एटले मने गमे छे
अने तारामां हुं छुं एटले हुं तने गमुं छुं
दुनियांनुं सर्वोतम सुख तारी पासे पामुं छुं
जे सुख दरेक माणस माटे एक सपनुं छे
तारामां कंइक छे एवुं जे मने ज गमे छे
(नरेश के.डॉडीया)
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