तुम्हारे साथ गुज़री हुई हर शाम .. Hindi Kavita By Naresh K. Dodia
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तुम्हारे साथ गुज़री हुई हर शाम .. Hindi Kavita By Naresh K. Dodia |
तुम्हारे साथ गुज़री हुई हर शाम ..
एक एकलम्हा मुझे याद है..
वो तुम्हारा पूछना ..
“मैं कैसी लग रही हूँ ?”
और मेरा कहना
"तुम सिर्फ़ मुझे अच्छी लगती हो"
वो तुम्हारा 'आप' कहना
'आप' से 'तुम' तक का
वो दिलकश सफ़र ....
फिर तो कई नाम दिए तुमने मुझे
'डीयर' , 'जान' 'मेरे शायर''
और कभीकभी मुस्कुराते हुए
जब 'पागल' कहती
तो मुझे तुम्हारे अंदर
बल खाती हुई चंचल सोलह साल की लड़की दिखाई देती थी
जो मेरे साथ ज़िंदगी का
हर लम्हा जीना चाहती थी...
हर रोज़ इक नये लिबास में सज कर
आईने में अपने आप को
मेरी नज़रों से देखती थी..
उन लम्हों में जैसे
समझदारी और दुनियादारी
की बातें तुम्हारे लिये बेमानी हो जाती !!
कुछ अरसा बीत गया है.. इन बातों को..
अब तुम्हारी बातों से वो अल्हड़पन
चला गया है,
बड़ी समझदारी भरा प्यार जताती हो अब!!
अब तुम मुझे मेरे नाम से..
मेरा रूतबा सोचकर ..
बुलाती हो!!
'मोहतरमा'
आज एक राज़ खोल ही देता हूँ
मैं
तुम्हारे साथ का
तुम्हारे वह अलहड़ प्यार का
हर लम्हा
फिर से जीना चाहता हूँ...
दिनभर की दुनियादारी
और समझदारी
के बाद
तुम्हारे साथ का वह आलम
वो पागलपन
वो लम्हे जहाँ हर बात में
भरा रहता है इक नशा...
जहाँ दिमाग को भूलकर हम
हैं सिर्फ़ और सिर्फ़ दिल से जी लेते थे
हा...वोही लम्हे फिर जीना चाहता हुं
वोही पागल दौर मैं
लौटाकर जाना चाहता हुं
“मेरी मोहतरमा' ,मेरी पर्पल तुलिप,
मेरी जुन बेबी,मेरी जान..
को
फिर से कहना चाहता हूँ तुम्हें
कि तेरी आँखों के पी कर
मैं शराबी हो गया ...
यह कोई शायरी नहीं ...
जाने हयात
आज भी आप को देखकर हक़ीकत बयाँ हो जाती है
आज भी तुम वैसी ही लगती हो
जैसी पहली बार मिली थी
चलो आज आप को फिर से
मखमल के बकसे मे पेक कर देते है
शाम के वक्त जब तन्हाइ होगी तब उस बकसे से
तुम्हे निकालेंगे ओर
शाम ए गम को फिर से हम
शरमिंदा कर देंगे
जब तुम आती थी तो धड़कन
जैसे तरन्नुम में चलती है!!
फीर इक तस्वीर बन जाती है
दो परिन्दों की...
जो चोंचें मिलाकर
गा रहे हैं
एक प्यार भरा नग़मा.!!
-नरेश के.डॉडीया
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