ज़ुल्फ़ जब खुल के बिखरती है मेरे शाने पर Urdu Gazal By कविता किरण
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ज़ुल्फ़ जब खुल के बिखरती है मेरे शाने पर Urdu Gazal By कविता किरण |
ज़ुल्फ़ जब खुल के बिखरती है मेरे शाने पर
बिजलियाँ टूट के गिरती हैं इस ज़माने पर
हुस्न ने खाई क़सम है नहीं पिघलने की
इश्क आमादा है इस बर्फ को गलाने पर
ताक में बैठे हैं इन्सान और फ़रिश्ते भी
सबकी नज़रें हैं टिकी रूप के खजाने पर
देखकर मुझको वो आदम से बन गया शायर
जाने क्या-क्या नहीं गुजरी मेरे दीवाने पर
मुन्तजिर हैं ये नज़ारे नज़र मिला लूँ पर
शर्म का बोझ है पलकों के शामियाने पर
लोग समझे कि 'किरण' तू है कोई मयखाना
कोई जाता ही नहीं अब शराबखाने पर
-कविता किरण
Labels:
Urdu Gazal
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