ये तजुर्बा ए इश्क कितना नेक है Hindi Kavita By Naresh K. Dodia
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ये तजुर्बा ए इश्क कितना नेक है Hindi Kavita By Naresh K. Dodia |
कुछ असुल तोडना है मुझे
कुछ रस्मे तोडनी है तुझे
मुसलसल एक राह मे चल पडी हुं
जो मंजील तेरे तक पहोचती है
मुझे मालुम है के ये
मेरी मंजील नही है
लेकिन ये दिल कहा मेरी सुनता है
बस वोह तो दिदार को पलपल तरसता है
हा..
हमारे बिच मिलो के फांसले है
रस्मो रीवाजो का एक घना जंगल भी है
हमारे बिच मिलो लंबी दिवार है
जो चीन की दिवार से भी लंबी है
हा…मगर एक अहेसास जरूर है
जो हमे कभी जुदा नही कर शकता
ये जो अहेसास तुंम नही समजते
और मुझे समजने की फूरसत नही
बस यह के…हर वकत हम दोनो मे से
कोइ एक की मुसलसल कोशिश जारी है
कोन ज्यादा प्यार करता है
तुंम और मे..?
हा..अब,इतने बरसो बाद समज मे आ गया के
ये “तुंम और मे” की दिवार हमारे बिच गीर चुकी है
मुजे और तुम्हे पता चल चुका है
“में और तुंम” का वजुद
उस दिवाल के नीचे दब गया है
अब हम एक है….
ये तजुर्बा ए इश्क कितना नेक है
-नरेश के.डॉडीया
Labels:
Hindi Kavita
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