यह कैसी परदादारी है तेरे और मेरे बिच में? Hindi Kavita By Naresh K. Dodia
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यह कैसी परदादारी है तेरे और मेरे बिच में? Hindi Kavita By Naresh K. Dodia |
यह कैसी परदादारी है तेरे और मेरे बिच में?
एक घना जंगल है
सात संमदर के पहेरे है
मिलो लंबी दिवारे है
कभी ना खत्म होने वाले रास्ते है
और कभी ना खत्म होने वाली हमारी गुफतगु
एक जिवन हम दोनो जी रहै है,वोह ऐसा जिवन है
जैसे कितने युगो का हमारा रूबारुं मिलना तय नही हुआं हो
तुंम ही बताओ एक मुलाकात का असर कितने युग होते है?
उठा लेता हुं कलम जब तेरा नाम आता है मेरे दो होठो के बिच
तब मेरी धडकने जरा तेज होती है
पुरी जिंदगी का हाल बताता हुं
मेरी गजल के पहेला और आखरी शेर के बिच
एक तुंम नही हो मेरे पास,
तब नही रहेता है कभी सुख मेरे बिच
ऐक दोरा खत्म होता है
फिर शुरुं होता एक नया जख्मी सफर
बहुत सी मुश्किलो के बिच
फांसलो दुरी अकसर तय हो जाती है
एक मुकमिल वकत के बिच
जब मेरे ख्वाबो कारवा का सफर शुरुं होता है
सफर खत्म हो जाता है कारवा का,
रात और सुबह के बिच ख्वाबो के दरमिंया
महोतरमां तुंम देखना
एक बार मेरा वकत भी आयेगा मुश्किलो के बिच
तब एक युग ऐसा आयेगा,
तब में और तुंम होंगे इस युग की पहेचान बनकर
मेरी बुढी आंखो के सामने आ के पुछेगी,
लडखडाते लहेजे से मुझे पुछोगी,"मुझे पहेचानते हो?”
तब में तुम से कहुंगा
"कुछ लोग आंखो से नही खुश्बु से पहेचाने जाते है"
यही गुफतुगुं कि कहानी होगी हम दोनो कि..
युगो जैसी जिंदगी के बिच
जो युगो युगो तक दोहराती जाती है…..
हमारी प्रेम कहानी..
महोतरमां और उस के शायर की
- नरेश के. डॉडीया
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