“ए कहे के मारी पाछळ समय बगाडॉ छो Gujarati Kavita By Naresh K. Dodia
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“ए कहे के मारी पाछळ समय बगाडॉ छो Gujarati Kavita By Naresh K. Dodia |
आत्मिय संमेलन
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“ए कहे के मारी पाछळ समय बगाडॉ छो
एना करता गझल अने कविता लखवा माटे
वधु समय आपो तो वधारो सारूं..”
ए भोळीने थोडी खबर छे के,न मळीए तो
गझल कविता केवी रीते लखी शकाय?
उर्जा उतपन्न करवा बे विजातिय ध्रुवनु मळवु जरुरी छे
ए ज रीते शब्दोने उतपन्न करवा बे विजातिय ह्रदयनु
मळवु जरूरी छे
नदी कैं दरिया किनारे टहेलवा नथी आवती
ए तो दरियामां भळवा आवे छे..
दर्दी कैं डोकटर पासे गुफतुगु करवा नथी आवतो
एना इलाज माटे आवे छे..
पछी ए कहे छे के
“तमे मने एक वार मने वातोए वळगाडो छो पछी
नथी हु मारामां रहेती के तमे तमारामां रहेता
एक बीजामा एटला मशूगुल थइ जइए छीए के
समय खुद तकाजो करे बस करो हवे तो हद थाय छे
एक बीजामा आटलु मशगुल थइ जवु ए हवे
आपणा माटे सारू नथी..
अने तमे जाणो छो के आपणी वातोनो आवता
केटलाय जन्मो सुधी अंत आववानो नथी..
एनु कारण छे के गमवानी परिसिमानी बहार
कोइनु गमी जवु..एनु मळवु एटले..
बे व्यकितनु आत्मिय संमेलन
अन्य संमेलनमा मेदनी खचोखच होय अने
अवाजो अने शोरबकोरनो माहोल होय..
ज्यारे बे व्यकितना आत्मिय संमेलनमां
झंखनाओनो चिरस्मर्णिय गुंजारव होय
आत्मिय संवेदनानी नजाकती आप ले होय
अवाजना मखमली मुलायमता छलकाती होय
वातोमां सुखनी छलोछल ताजगी वर्ताती होय
कोमळतानी कटोरी भरी अहेसास पीवडावता होय
दुरभाषमां जाणे हाथ पकड्या होय एवो अहेसास होय
मौननी बे पळॉ वच्चे मृदुतानो टंकार गुंजतो होय
वातो वच्चेनी पळेपळ कंइक पाम्यानो संतोष होय
बे भीन्न विजातिय अवाजोमां गजबनो तालमेल होय
बे हैया वच्चे हुंफाळी मौसमनो मुशायरो होय
दूरतानी वच्चे निकटताथी निकट होवानो साथ होय
वंसतोनी वादीओनी हवानो सळवळाट होय..
अनेक खाटी मीठी घटनाओनो चितार होय..
ए सिवाय अनेक अनकही वांचाओ,वेदनाओ,
होठे आवेला संवादोनु बहार ना नीकळवु,
कंइक अजाण्यु एवु ना समजाय अकथ्य एवु तथ्य होय
अने ज्यारे आपणे छुटा पडीए छीए…..ने पछी
बंने एकला पडीए त्यारे विचारे चडी जइए छीए के
ओह!हजु केटलु कहेवानु अने पुछवानु बाकी रही गयु
ने बस बीजा दिवसनी राह जोइए छीए….
ने चातकनी जेम तरस्या थइने
एक नवा आत्मियसंमेलननी…
-नरेश के.डॉडीया
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