कुमुद नयनी सी एक चंचल सी नारी Hindi Kavita By Naresh K. Dodia
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कुमुद नयनी सी एक चंचल सी नारी Hindi Kavita By Naresh K. Dodia |
आहा !
सौंदय का एक अदभूत नजारा
आज मेरी आंखो के सामने आ गया
कुमुद नयनी सी एक चंचल सी नारी
सामने तस्वीर बन के उभर आइ
अनार के दाने जैसी उस की दंतपंकती
उस के दो गुलाबी होठो के बिच ऐसे दिख रही थी
जैसे मुश्कुराहट की भाषा मे कोइ आलादरज्जे
नजमे,गजले कविता हो
उस की मृगनयनी सी आंखे हंस तो रही थी
लेकिन एक हलकी सी थोडी खूशीया और गम की
एक नन्ही सी लकिर नजर आइ
उस खूबसूरत आंखो के दो पतली सी “आइब्रो”
खिंची गइ थी,मुजे तो ऐसे लगा के
एक राम का धनुष है और दुसरा अर्जुन का धनुष
शांत निर्मल एक ठहेरा हुवा आकाश की तरह
उस का ललाट चमक रहा था…
और उस मे
बिंदिया चमक रही थी
जैसे उस ललाट के चमकता चांद
बडे ही शोख से उस ने अपने बाल सजाये थे
ऐसा लगता था घने बादलो को एक आकार दिया हो
उन के कानो मे बाली हसते हसते जुल रही थी
जैसे बागोनो मे पेडो पे बंधे हुवे जुले हो
ये इश्वर भी एक बडा अदाकार है,
मुझे लगता है वो भी मेरी तरह आप का दिवाना है
कितनी नजाकत से तुम्हे तरासा है
शरीर के एक भी हिस्से को उसने अधुरा नही छोडा है
सब जगह उसे ने साबित किया है
ये एक इश्वरीय कमाल की पेसकश है
शायद वो भी मेरी तरह शायरी का शोखिन होगा
इस लिए तो हमारी गजल के कविता के लिए
आप को “महोतरमा” के उपनाम से इस धरती
पर मेरे लिए भेजा है
इस से आगे तो आप की तारीफ कि दास्तान लंबी है
फिर भी मे आप के प्यार मे इतना मशरुफ हो चुका हुं
एक तरह की तारीफे को दोहरा रहा हुं
जब तुम पहेली बार मिली थी
तब तुम कहती थी में किसी चमत्कार में विश्वास नही रखती हुं
लेकिन तुम्हारी सागर जैसी चाहत की रवानी मेरी नदी जैसा शांत
व्यकित्व को कोइ अलग चौराहे पर लाके खडा कर देतां है
और वोह चौराहे पे तुम्हारे प्यार के चमत्कार के सिवा मुझे
कुछ नजर नही आतां है.
फिर भी मुझे इस चुनौती के दोर में गुजरना अच्छा लगता है
अब मुझे लगतां है हमारी चाहत का यह सफर
आखरी सांस तक चलता रहे
और रोज नइ नइ ख्वाहिशो मे सजता रहे..
-नरेश के.डॉडीया
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