बात जिंदगी पे अटक गइ है Hindi Kavita By Naresh K. Dodia
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बात जिंदगी पे अटक गइ है Hindi Kavita By Naresh K. Dodia |
हम अकसर मिलते है
बाते कुछ होती नही
लेकीन मेरी आंखो की भाषा समज जाती है
वो कहेती है अब लब्ज की जरूर नही है
उन की आंखो की गहेराइ को मे देखता रहेता हुं
उन की आंखो के चारो और थोडी झूरीया दिख रही है
मुझे ऐसा करते देख के उस नें उदासी भरी
मुश्कान नवाजा था
दूसरे दिन वोह मुजे मिलने आयी
तो मैने देखा उस ने बालो की गहेराइ मे
उस ने रंग लगा दिया था
ये प्यार भी कितनां जालीम है
बरसो पहेले उन खूबसूरत काले घने बालो पे फिदा था
आज भी उसे वो बरकरार रखना चाहती है
और कहती है जिंदगी कितनी जल्दी बित जाती है
देखते देखते मैने चालीस को पार कर लिया
आज फिर मैने उस के उन के चश्के के आरपार
आंखो की गहेराइ में जांकने की कोशिश की
मेरां घुंधलां सा वजुद देखा
अचानक उस की आंखो से आंसु की धारा बहने लगी
चश्मे उतार दिए और मेरां वजुद और साफ दिखने लगा
दुसरे दिन मिलने आयी तो उन के
चश्मे की जगह कोन्टेक लेंस लगा दीये थे
लेकीन संमदर की प्यास में बरसो से तडप रही
ये झील सी गहेरी आंखो में आंसुं फिर से बहेने लगे
मैने उस को बाहो में भरके दिल से लगा लिआ
हम दोनो की धडकने बाते करने लगी….
दोनो के दिल से एक बात निकल आयी
हम दोनो के दिल में किरायेदार रहेता है
जो कभी दिल को खाली करना चाहता नही है
बस इस तरह अपने अपने मकानो का
छुप छुप के मुआयनां करते रहेते है
पैसो वाली बात होती तो किरायेदार को पैसा दे कर
दिल का मकान खाली हो शकता है
बात जिंदगी पे अटक गइ है
मेरी आंखो में देख के फिर वो बोली
"कितने लाचार है ये दिल के मकानो के मालिक…
चाहते हुवे भी चाहिते लोगो को अपने दिल के
मकान मे बसा नही शकते है
-नरेश के.डॉडीया
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