"प्रेयसी" Hindi Kavita By Naresh K. Dodia
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"प्रेयसी" Hindi Kavita By Naresh K. Dodia |
में हमेशां तुझ को अपनी ही नजरो से देखतां था
और अपनी ही सोच लेकर तुंझे मिलतां थां
अपनी ही नजरो से देखनां मतलब में हमेशां
तेरी खूबसूरती और तेरी अदा की बात करतां थां
और तुझे वो अच्छा नही लगतां थां
मैने कभी तेरी बात सुनने की और
तेरी तफतीश करने की कोशिश ही नही की
बस मे हमेशां मेरे मन की बाते
तुझ से मुसलसल दोहराता रहतां थां,
"में तुझे जान से ज्यादा चाहतां हुं."
"में तेरे बैगेर जी नही शकतां."
"तुंम थोडे धंटे मुझ से दूर होती हो तो"
मुझ बैचेनी सी होने लगती है"
तुम से इतनी दूरी मुझ से सही नही जाती
वगेरा वगेरा..
तुंम हर बार मेरी ऐसी बातो मुश्कुराते मुश्कुराते टाल देती थी
शायद दोस्ती से आगे जाने की मुझे थोडी जल्दी थी
इस लिए ऐसी बाते मुझे हरबार कहनां जरूरी थी
एक दिन मुझ से रहा नही गया और
मैने तुझ से पुछ लिया
"तुम मुझे चाहती हो...?"
तुमने कुछ जवाब नही दिया
मैने भी इस सवाल को इतनां तवज्जो नही दीया थां
एक दिन...हा...पुरा एक दिन
मैने तुझ से बात नही की
और दुसरे दिन खुद तुमने फोन कर के बोला
कोइ अपनी "प्रेयसी" को एक दिन ऐसे अकेले छोड देता है
चाहते हो तो चाहत निभाना शीखो..
उस पल से मेरे जिवन को
"प्रेयसी" नाम की महोतरमा के
नाम कर दिया.
-नरेश के.डॉडीया
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