कुछ हिंदी - उर्दू शेर - By नरेश के. डॉडीया
![]() |
कुछ हिंदी - उर्दू शेर - By नरेश के. डॉडीया |
हमारे गम में भी खुशी की बड़ी तादाद है
युं समझे की तुम्हारे इश्क़ की सौगात है
एहसास उस को है मगर उतना नहीं
सागर हूं मैं फिर भी उसे डूबना नहीं
कोइ भी किरदार हो हम बा-खुबी निभाते गए,
इस तरह की नौटंकी कर के कमी छूपाते गए.
जब भी सीने में तुम्हारे दर्द सा जगने लगे
बांह में मेरी तुम्हें आ कर समाना चाहिए
लाखो दिवाने आप के होंगे यहां
मुझ पे हीं कयुं आंखे तुम्हारी चार है?
युं सामने बेठे रहे तो बात ना बनती
तेरे भी लब मेरे भी लब मिलना जरुरी है
दब गए थे लब हमारे उस जबरदस्ती तले
हर्फ कैसे हम निकाले रात की मस्ती तले
जख्म का ये सिलसिला एसे ही चलता गया
दर्द दिल में था मगर बाहर से हसता गया.
हस के भी कोइ बुलाता है मुझे डर लगता है
एक धोखा खा लिया सब इश्क़ का घर लगता है
पुराने खत का पढना हम को अच्छा लगता है
कभी भी पढ शके एसा ये कलमा लगता है
मेरी महोतरमां को सब पढने लगे
मेरी गजल लगतां है की अखबार है
– नरेश के. डॉडीया
Labels:
sher
No comments:
Post a Comment