जी बहलता भी नही हैं ना शुकुन मिलता है Gazal By Naresh K. Dodia


  जी बहलता भी नही हैं ना शुकुन मिलता है Gazal By Naresh K. Dodia

जी बहलता भी नही हैं ना शुकुन मिलता है

फोन से मेसेज से, दिल अब कहा भरता है


आज कल खुद से ही बाते करती रहती हुं मैं

मेरी ये हरकत से मेरा आइना हसता है


आज कल लवस्टॉरी पढ के दिन बिताती हुं मैं

तुं नही तो वक्त मेरा ऐसे हीं कटता है


जान पर आ जाती है मेरी ये ख्वाहीशे अब

आग लगती है बदन मे नां धुंआ उडता है


शाम होते ही परिंदे लोट आते है रोज

घोंसला मेरा भी तेरी राह को तक्ता है


इश्क करने की सजा दोनो को मिलती कहां है

कैद में तेरी मैं,तुं चाहे वहां फिरता है


शाम ढलती है मगर ये खौफ रातो का है

ये अकेलापन भी सांपो की तरह डसता है


ये महोतरमा तुझे मिलने तडपती हैं और

तुं है अपने काम में हीं बस लगा रहता है

– नरेश के.डॉडीया


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